खेत मै ठाड़ी है लइया

खेत मै ठाड़ी है लइया 

लोकगीत ✍️उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

एक पड़ोसन मोकौ भाबै,चुलबुल बाको नाम
देखै जब बा जियरा डोलै, होय न मोसे काम
कौन ढोरन कौ खिलबइया, उनै फिर पानी पिलबइया
खेत मै ठाड़ी है लइया, कौन काटैगो अब भइया।
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जब बतियान लगै बा तौ फिर,   होबै चैन हराम
बाके ऊपर मरत हियाँ के, बहुतेरे गुलफाम
होत है बहुत हाय दइया, डूब जाबै उनकी नइया
खेत मै ठाड़ी है लइया, कौन काटैगो अब भइया।
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बुड्ढे- सुड्डे बाकौ ताकैं,लेंय करेजो थाम
घास न डालै काऊ कौ बा, सब होबैं नाकाम
बनी बा दूध देत गइया, कमाबै लाखन रूपइया
खेत मै ठाड़ी है लइया, कौन काटैगो अब भइया।
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जाने कितते मुच्छड़ डोलैं, हैं मुछमुंड तमाम
लेबत बाको नाम रहत हैं, करैं न बे आराम
उनै तौ कछू न मिलबइया, याद आबै उनकौ मइया
खेत मै ठाड़ी है लइया, कौन काटैगो अब भइया।
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कंजूसी मै बहुतै आगे, करै न खर्च छदाम
बाकी बोली इतती मीठी, सब हुइ जाँय गुलाम
नाय बा घर पै लै जइया, खाँय बैठे अब बे घुइया
खेत मै ठाड़ी है लइया, कौन काटैगो अब भइया।
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बाके मारे पुलिस हिअन की, है केती बदनाम
अब दबंग घूमैं सिगरे मै, पब्लिक करै सलाम
मिलै पापन कौ पनपइया, दूध मैं उनकौ धुलबइया
खेत मै ठाड़ी है लइया, कौन काटैगो अब भइया।
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समझु नआबै का करिहौं अब,होय बुरो अंजाम
दिल कौ दरद दूर जो करबै,नाय बनी बा बाम 
काम अपनो अब बिगड़इया, सनीचर की ऐसी ढइया
खेत मै ठाड़ी है लइया, कौन काटैगो अब भइया।
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 रचनाकार✍️ उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट 
'कुमुद -निवास' 
बरेली (उत्तर प्रदेश)
 मोबा.- 98379 44187

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4 Comments

बहुत ही उम्दा सृजन

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बहुत सुंदर

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Renu

26-Feb-2023 06:00 PM

👍👍🌺

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